
भारतीय शादियों में सबकुछ होता है — नगाड़े, डांस, नोटों की बारिश, ब्राइडल एंट्री पर कोहरा और बारात में “लॉन्ड्री वाला लहंगा” पहनकर नागिन डांस करते मामा-मौसा। लेकिन जैसे ही विवाह के केंद्रबिंदु पंडित जी की दक्षिणा का वक्त आता है, परिवार के चेहरे पर ऐसी संजीदगी आ जाती है जैसे यूपीएससी का इंटरव्यू चल रहा हो।
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शराब के लिए ओपन बार, पंडित जी के लिए 501 का लिफाफा!
बारात में जैसे ही भांगड़ा शुरू होता है, 750ml के बोतल खोलने की स्पीड, गूगल के AI से तेज हो जाती है। गेस्ट हाउस की छत पर डीजे इतना तेज़ बजता है कि ऊपर से गुज़रता हवाई जहाज भी फ्लाइट प्लान बदल ले।
लेकिन जैसे ही हवन ख़त्म होता है और पंडित जी “दक्षिणा” की ओर इशारा करते हैं, परिवार का सबसे चतुर सदस्य आगे आता है — वो जो EMI में गाड़ी ले सकता है, लेकिन दक्षिणा में 100 रुपए निकालने से पहले 10 बार सोचता है।
विवाह का असली हीरो: पंडित, लेकिन उसका हाल ‘साइड कैरेक्टर’ जैसा
पंडित जी वो शख्स हैं, जिनके बिना शादी वैध नहीं, लेकिन उनके लिए AC पंडाल में कुर्सी नहीं, और दक्षिणा में चॉकलेट के साथ ‘थैंक यू’ कार्ड पकड़ा दिया जाता है।
ऐसे में पंडित भी सोचते हैं: “काश मैं भी डीजे चलाना सीख लेता…”
दुल्हन के लहंगे पर लाखों, लेकिन पंडित को पेट्रोल भत्ता नहीं
दुल्हन का लहंगा डिजाइनर हो सकता है, घोड़ी पर चढ़ने वाले घोड़े का हेल्थ इंश्योरेंस हो सकता है, लेकिन पंडित जी को आने-जाने का किराया तक नहीं मिलता। आखिर क्यों?
सोचिए, बदलिए
शादी सिर्फ रस्मों का नहीं, संस्कारों का उत्सव है। और इन संस्कारों को निभाने वाला पंडित, शादी का इवेंट मैनेजर नहीं, अध्यात्मिक निर्देशक होता है। तो अगली बार जब शादी हो—डिजाइनर कार्ड और डीजे बुक करने से पहले, पंडित जी के सम्मान को भी लिस्ट में शामिल कर लीजिए।
“जिनके बिना शादी संभव नहीं, उनके बिना सम्मान शादी की शोभा नहीं।”
शराब और शो ऑफ से भरी इस सामाजिक विडंबना पर यह हल्का-फुल्का कटाक्ष सिर्फ हँसी नहीं, सोच का कारण भी बनना चाहिए।
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